ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब व्यक्ति की कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, नौंवे और दसवें भाव में सूर्य राहु या सूर्य शनि की युति हो रही है तो माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। लग्नेश यदि छठे आठवें बारहवें भाव में हो और लग्न में राहु हो तो भी पितृदोष बनता है।
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।
पितृ दोष को ऐसे पहचानें जन्म कुंडली में पितृ दोष होने पर व्यक्ति के सामने रोजगार का संकट बना रहता है. ऐसे व्यक्ति के जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं होता है. ऐसे लोग अपना करियर भी बदलते रहते हैं. इनके जीवन में कोई तरक्की नहीं होते हैं. धन की कमी बनी रहती है. शत्रु सक्रिय रहते हैं. ऐसे लोगों के छिपे हुए शत्रु भी अधिक होते हैं. मानसिक तनाव बना रहता है. किसी गंभीर रोग से भी पीड़ित हो सकते हैं. अपंगता भी हो सकती है. हर कार्य में अड़चन बनी ही रहती है. शिक्षा भी पूरी नहीं होती है. अगर इस तरह की समस्याएं बनी हुई हैं तो समझ लेना चाहिए कि जन्म कुंडली में पितृ दोष हो सकता है. इसका गंभीरता से पता लगाकर तुरंत उपाय किया जाना चाहिए.
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